छत्तीसगढ़ के लोक तिहार | दान की महान संस्कृति का परिचायक ‘छेरछेरा’ (मां शाकंभरी जयंती)
1 min readLok Tihar of Chhattisgarh | ‘Chherchera’ (Maa Shakambhari Jayanti) the symbol of the great culture of charity
रायपुर। छेरछेरा पर्व पौष पूर्णिमा के दिन छत्तीसगढ़ में बड़े ही धूमधाम, हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है। इसे छेरछेरा पुन्नी या छेरछेरा तिहार भी कहते हैं। इसे दान लेने-देने पर्व माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन दान करने से घरों में धन धान्य की कोई कमी नहीं रहती। इस दिन छत्तीसगढ़ में बच्चे और बड़े, सभी घर-घर जाकर अन्न का दान ग्रहण करते हैं। युवा डंडा नृत्य करते हैं।
छत्तीसगढ़ की संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन के लिए शासन द्वारा बीते चार वर्षों के दौरान उठाए गए महत्वपूर्ण कदमों के क्रम में स्थानीय तीज-त्यौहारों पर भी अब सार्वजनिक अवकाश दिए जाते हैं। इनमें छेरछेरा (मां शाकंभरी जयंती) तिहार भी शामिल है। जिन अन्य लोक पर्वों पर सार्वजनिक अवकाश दिए जाते हैं वे हैं हरेली, तीजा, मां कर्मा जयंती, विश्व आदिवासी दिवस और छठ। अब राज्य में इन तीज-त्यौहारों को व्यापक स्तर पर मनाया जाता है, जिसमें शासन की भी भागीदारी होती है। इन पर्वों के दौरान महत्वपूर्ण शासकीय आयोजन होते है तथा महत्वपूर्ण शासकीय घोषणाएं भी की जाती है। छेरछेरा पुन्नी के दिन स्वयं मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल भी परम्परा का निर्वाह करते हुए छेरछेरा मांगते हैं।
छत्तीसगढ़ का लोक जीवन प्राचीन काल से ही दान परम्परा का पोषक रहा है। कृषि यहाँ का जीवनाधार है और धान मुख्य फसल। किसान धान की बोनी से लेकर कटाई और मिंजाई के बाद कोठी में रखते तक दान परम्परा का निर्वाह करता है। छेर छेरा के दिन शाकंभरी देवी की जयंती मनाई जाती है। ऐसी लोक मान्यता है कि प्राचीन काल में छत्तीसगढ़ में सर्वत्र घोर अकाल पड़ने के कारण हाकाकार मच गया। लोग भूख और प्यास से अकाल मौत के मुँह में समाने लगे। काले बादल भी निष्ठुर हो गए। नभ मंडल में छाते जरूर पर बरसते नहीं। तब दुखीजनों की पूजा-प्रार्थना से प्रसन्न होकर अन्न, फूल-फल व औषधि की देवी शाकम्भरी प्रकट हुई और अकाल को सुकाल में बदल दिया। सर्वत्र खुशी का माहौल निर्मित हो गया। छेरछेरा पुन्नी के दिन इन्हीं शाकंभरी देवी की पूजा-अर्चना की जाती है। यह भी लोक मान्यता है कि भगवान शंकर ने इसी दिन नट का रूप धारण कर पार्वती (अन्नपूर्णा) से अन्नदान प्राप्त किया था। छेरछेरा पर्व इतिहास की ओर भी इंगित करता है।
माई कोठी के धान ला हेर हेरा
छेरछेरा पर बच्चे गली-मोहल्लों, घरों में जाकर छेरछेरा (दान) मांगते हैं। दान लेते समय बच्चे ‘छेर छेरा माई कोठी के धान ला हेर हेरा’ कहते हैं और जब तक गृहस्वामिनी अन्न दान नहीं देंगी तब तक वे कहते रहेंगे- ‘अरन बरन कोदो दरन, जब्भे देबे तब्भे टरन’। इसका मतलब ये होता है कि बच्चे कह रहे हैं, मां दान दो, जब तक दान नहीं दोगे तब तक हम नहीं जाएंगे।
छेरछेरा पर्व में अमीर गरीब के बीच दूरी कम करने और आर्थिक विषमता को दूर करने का संदेश छिपा है। इस पर्व में अहंकार के त्याग की भावना है, जो हमारी परम्परा से जुड़ी है। सामाजिक समरसता सुदृढ़ करने में भी इस लोक पर्व को छत्तीसगढ़ के गांव और शहरों में लोग उत्साह से मनाते हैं।