ISRO Small Satellite Launch Vehicle | ऑर्बिट में डालने के बाद सैटेलाइट्स से संपर्क टूटा, देश का नया रॉकेट लॉन्च
1 min readSatellites lost contact after being put in orbit, country’s new rocket launched
नई दिल्ली। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन 7 अगस्त 2022 को देश का नया रॉकेट लॉन्च कर दिया गया है. लॉन्चिंग आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर के लॉन्च पैड एक से सफलतापूर्वक की गई. स्मॉल सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल में EOS02 और AzaadiSAT सैटेलाइट्स भेजे गए हैं. लॉन्चिंग सफल रही. रॉकेट ने सही तरीके से काम करते हुए दोनों सैटेलाइट्स को उनकी निर्धारित कक्षा में पहुंचा दिया. रॉकेट अलग हो गया. लेकिन उसके बाद सैटेलाइट्स से डेटा मिलना बंद हो गया.
ISRO launches its new SSLV-D1 rocket from Sriharikota
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— ANI Digital (@ani_digital) August 7, 2022
ISRO प्रमुख एस. सोमनाथ ने कहा कि इसरो मिशन कंट्रोल सेंटर लगातार डेटा लिंक हासिल करने का प्रयास कर रहा है. हम जैसे ही लिंक स्थापित कर लेंगे, देश को सूचित करेंगे. EOS02 एक अर्थ ऑब्जरवेशन सैटेलाइट हैं. जो 10 महीने के लिए अंतरिक्ष में काम करेगा. इसका वजन 142 किलोग्राम है. इसमें मिड और लॉन्ग वेवलेंथ इंफ्रारेड कैमरा लगा है. जिसका रेजोल्यूशन 6 मीटर है. यानी ये रात में भी निगरानी कर सकता है. AzaadiSAT सैटेलाइट्स स्पेसकिड्ज इंडिया नाम की देसी निजी स्पेस एजेंसी का स्टूडेंट सैटेलाइट है. इसे देश की 750 लड़कियों ने मिलकर बनाया था.
PSLV यानी पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल 44 मीटर लंबा और 2.8 मीटर वाले व्यास का रॉकेट हैं. जबकि, SSLV की लंबाई 34 मीटर है. इसका व्यास 2 मीटर है. पीएसएलवी में चार स्टेज हैं. जबकि एसएसएलवी में तीन ही स्टेज है. पीएसएलवी का वजन 320 टन है, जबकि एसएसएलवी का 120 टन है. पीएसएलवी 1750 किलोग्राम वजन के पेलोड को 600 किलोमीटर तक पहुंचा सकता है. एसएसएलवी 10 से 500 किलो के पेलोड्स को 500 किलोमीटर तक पहुंचा सकता है. पीएसएलवी 60 दिन में तैयार होता है. एसएसएलवी सिर्फ 72 घंटे में तैयार हो जाता है.
क्या है एसएसएलवी –
एसएसएलवी का फुल फॉर्म है स्मॉल सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल यानी छोटे सैटेलाइट्स की लॉन्चिंग के लिए अब इस रॉकेट का इस्तेमाल किया जाएगा. यह एक स्मॉल-लिफ्ट लॉन्च व्हीकल है. इसके जरिए धरती की निचली कक्षा में 500 किलोग्राम तक के सैटेलाइट्स को निचली कक्षा यानी 500 किलोमीटर से नीचे या फिर 300 किलोग्राम के सैटेलाइट्स को सन सिंक्रोनस ऑर्बिट में भेजा जाएगा. सब सिंक्रोनस ऑर्बिट की ऊंचाई 500 किलोमीटर के ऊपर होती है.
भविष्य में इसके लिए अलग लॉन्च पैड –
फिलहाल SSLV को श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर के लॉन्च पैड एक से छोड़ा जाएगा. लेकिन कुछ समय बाद यहां पर इस रॉकेट की लॉन्चिंग के लिए अलग से स्मॉल सैटेलाइल लॉन्च कॉम्प्लेक्स (SSLC) बना दिया जाएगा. इसके बाद तमिलनाडु के कुलाशेखरापट्नम में नया स्पेस पोर्ट बन रहा है. फिर वहां से एसएसएलवी की लॉन्चिंग होगी.
कितना लंबा-चौड़ा है नया SSLV रॉकेट –
स्मॉल सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल की लंबाई 34 मीटर यानी 112 फीट है. इसका व्यास 6.7 फीट है. कुल वजन 120 टन है. यह PSLV रॉकेट से आकार में काफी छोटा है. इसमें चार स्टेज हैं. इसके तीन स्टेज सॉलिड फ्यूल से चलेंगे. बल्कि चौथा स्टेज लिक्विड ईंधन से प्रोपेल होगा. पहला स्टेज 94.3 सेकेंड, दूसरा स्टेज 113.1 सेकेंड और तीसरा स्टेज 106.9 सेकेंड जलेगा.
क्यों पड़ी SSLV रॉकेट की? –
स्मॉल सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल की जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि छोटे-छोटे सैटेलाइट्स को लॉन्च करने के लिए इंतजार करना पड़ता था. उन्हें बड़े सैटेलाइट्स के साथ असेंबल करके एक स्पेसबस तैयार करके उसमें भेजना होता था. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर छोटे सैटेलाइट्स काफी ज्यादा मात्रा में आ रहे हैं. उनकी लॉन्चिंग का बाजार बढ़ रहा है. इसलिए ISRO ने इस रॉकेट को बनाने की तैयारी की.
कितनी लागत आएगी SSLV की एक लॉन्च पर –
स्मॉल सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल रॉकेट के एक यूनिट पर 30 करोड़ रुपये का खर्च आएगा. जबकि PSLV पर 130 से 200 करोड़ रुपये आता है. यानी जितने में एक पीएसएलवी रॉकेट जाता था. अब उतनी कीमत में चार से पांच SSLV रॉकेट लॉन्च हो पाएंगे. इससे ज्यादा अंतरराष्ट्रीय सैटेलाइट अंतरिक्ष में छोड़े जा सकेंगे.