Linguistic Survey In CG | छत्तीसगढ़ के प्राथमिक स्कूलों में होगा भाषाई सर्वे, फिर तैयार होगी बच्चों को पढ़ाने की योजना
1 min readLinguistic survey will be done in primary schools of Chhattisgarh, then plan to teach children will be ready
रायपुर। स्कूल शिक्षा विभाग प्रदेश के सभी प्राथमिक स्कूलों में भाषाई सर्वे करने जा रहा है। इस दौरान बच्चों द्वारा घर पर बोले जाने वाली भाषा का संकलन किया जाएगा। इसी के आधार पर बच्चों की पढ़ाई के लिए नई योजना तैयार की जाएगी।
दरअसल, अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर सरकार ने छत्तीसगढ़ की बोली-भाषाओं में पढ़ाई-लिखाई की गंभीर कोशिश शुरू की है। समग्र शिक्षा अभियान के महाप्रबंधक नरेन्द्र दुग्गा ने बताया, राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत हर राज्य को भाषाई सर्वेक्षण का जिम्मा सौंपा गया है। छत्तीसगढ़ राज्य पूरी गंभीरता के साथ इस भाषाई सर्वेक्षण को करने के लिए तत्पर है। इस सर्वेक्षण के मदद से हम प्राथमिक कक्षाओं की भाषाई विविधता पर आंकड़े जुटा पाएंगे। इससे प्रदेश के भाषाई परिदृश्य की स्पष्टता के साथ समझ बढ़ेगी। महाप्रबंधक ने कहा, इस सर्वे के आधार पर राज्य में आगे की शिक्षा नीति और क्षमता निर्माण की रणनीति में मदद मिलेगी।
अधिकारियों ने बताया, सर्वे की शुरुआत 22 फरवरी से होगी। प्रदेश में मूलभूत साक्षरता और गणितीय कौशल विकास अभियान के तहत प्राथमिक स्कूली बच्चों के द्वारा उनके घर पर बोली जाने वाली भाषा की जानकारी संकलित की जाएगी। राज्य स्तर पर सर्वे कार्य को पूरा करने के लिए दिशा-निर्देश सभी प्रधान पाठकों को दिए गए हैं। सर्वे के पहले प्राथमिक स्कूल के प्रधान पाठकों को प्रशिक्षण देकर सर्वे के संबंध में विस्तार से जानकारी दी जाएगी।
ऐसे होगा भाषाओं का सर्वेक्षण –
स्कूल शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने बताया कि भाषाई सर्वे के लिए बिन्दुवार प्रपत्र तैयार किया गया है। यह प्रपत्र पहली कक्षा के क्लास टीचर द्वारा भरा जाएगा। इस प्रपत्र में कक्षा में पढ़ाई के माध्यम के रूप में उपयोग की जाने वाली भाषा को समझने और बोलने की विद्यार्थियों की क्षमता, विद्यार्थियों की मातृभाषा और विद्यार्थियों मातृभाषा को समझने और बोलने की क्षमता पर ध्यान दिया जाएगा। इससे पहले कक्षा के विद्यार्थियों की सूची तैयार की जाएगी। उसमें कक्षा के हर बच्चे के नाम के आगे उसकी मातृभाषा लिखी जाएगी। इस सूची को कक्षा के रजिस्टर में भी दर्ज किया जाएगा।
अभी हिंदी-अंग्रेजी है पढ़ाई का माध्यम –
छत्तीसगढ़ी को राजभाषा का दर्जा दिए जाने के बाद भी अभी तक छत्तीसगढ़ में पढाई-लिखाई का माध्यम हिंदी-अंग्रेजी भाषा ही है। स्कूलों में बच्चों को हिन्दी में पढ़ाया जाता है, लेकिन वे बात अपनी मातृभाषा में करते हैं। इससे दूरस्थ अंचलों के बच्चों को पढ़ने में कठिनाई होती है। उम्मीद जताई जा रही है कि भाषाई सर्वेक्षण के बाद शायद इस स्थिति में सुधार आए।
द्विभाषिक पुस्तकें छाप दी, पढ़ाई की व्यवस्था नहीं –
छत्तीसगढ़ी में प्रमुख रूप से छत्तीसगढ़ी, सरगुजिहा, दोरली, हल्बी, भतरी, धुरवी, गोंडी, सादरी, कमारी, कुडुख, बघेली, बैगानी, माड़िया बोली जाती है। इसके अलावा सीमावर्ती जिलों में ओड़िया, बांग्ला, मराठी और तेलुगु भी बोलचाल की प्रमुख भाषाएं हैं। स्कूल शिक्षा विभाग ने पहली और दूसरी कक्षा के बच्चों के लिए इन भाषाओं में किताबों का प्रकाशन किया है। राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (SCERT) ने अपनी किताबों का एक पेज हिन्दी का दूसरा पेज स्थानीय भाषा में तैयार की हैं।
पढ़ाई का माध्यम हिंदी, इसलिए लोग इसे ही मातृभाषा मानने लगे –
स्कूल शिक्षा विभाग अभी भी प्रदेश की स्थानीय बोली-भाषाओं को मातृभाषा कहने से परहेज कर रहा है। भाषाई सर्वेक्षण के प्रपत्र में भी मातृभाषा की जगह घर में बोले जाने वाली भाषा पद का प्रयोग किया गया है। छत्तीसगढ़ राजभासा मंच के संरक्षक और भाषा आंदोलनकारी नंद किशोर शुक्ल कहते हैं, हिंदी भाषी क्षेत्रों में मातृभाषा को लेकर यह अजीब सा भ्रम फैला हुआ है। इन क्षेत्रों में पढ़ाई का माध्यम हिंदी है इसलिए हिंदी को लोग मातृभाषा मानने लगे हैं।
सचाई यह है कि छत्तीसगढ़ी, सरगुजिहा, गोंडी, हलबी, बघेली, भोजपुरी, मैथिली, अवधी, मालवी और निमाड़ी जैसी भाषाएं ही उनकी मातृ भाषाएं हैं, जिन्हें उन्होंने मां की गर्भ में ही सीखना शुरू कर दिया था। पिछली जनगणना के समय भी यह स्पष्ट किया गया था कि मातृभाषा वह है जिसमें मां ने बच्चे से बात की थी। या फिर जो परिवार में सामान्य तौर पर बोली जाती है।