Good News | गूगल, एलेक्सा, सिरी और कार्टाना जल्द करेंगे छत्तीसगढ़ी में आपसे बात
1 min readGoogle, Alexa, Siri and Cartana will soon talk to you in Chhattisgarhi
रायपुर। भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) बैंगलोर द्वारा विभिन्न भारतीय भाषाओं, उपभाषाओं के साथ ही छत्तीसगढ़ी भाषा को भी डिजिटल करने का कार्य किया जा रहा है। लोगों तक उन्हीं की भाषा में जानकारी पहुंचाने के लिए IISC द्वारा महत्वाकांक्षी परियोजना शुरू की गई है। वही, छत्तीसगढ़ के पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय में साहित्य व भाषा अध्ययनशाला के शोध उपाधिधारक डॉ. हितेश कुमार का चयन एसोसिएट रिसर्च (छत्तीसगढ़ी) के पद पर किया गया है।
ज्ञान हो या शिक्षा, इसे कभी भी सूचना प्रौद्योगिकी के उपयोग में बाधक नहीं बनना चाहिए। प्रौद्योगिकी तभी सार्थक होती है जब वह उन लोगों को आसानी से उपलब्ध हो, जिन्हें इसकी जरुरत है। जब कोई अपनी जरुरत की जानकारी अपनी भाषा और उपभाषा में प्राप्त कर सकता है। आईआईएससी ने इस तरह का परिवर्तन लाने के लिए एक महत्वाकांक्षी परियोजना शुरू की है।
ये विचार डॉ. हितेश कुमार ने व्यक्त किए। डॉ. हितेश कुमार ने अपना शोध कार्य पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. केशरी लाल वर्मा के निर्देशन में पूरा किया है। डॉ. हितेश राजभाषा छत्तीसगढ़ी के साथ ही रायगढ़, सरगुजा, बिलासपुर और कवर्धा क्षेत्र में बोली जानी वाली छत्तीसगढ़ी के लिए विभिन्न सहयोगियों के साथ कार्य कर रहे हैं।
आज गूगल, एलेक्सा, सिरी, कार्टाना आदि से हम चुटकियों में जो भी जानकारी चाहते हैं वह मिल जाती है किंतु जब इसी को स्थानीय भाषा में चाहते है तो बहुत ही ज्यादा कठिनाई होती है। छत्तीसगढ़ी भाषा भी विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग तरह से बोली जाती है।
छत्तीसगढ़ी भाषा आनलाईन प्लेटफार्म में उपलब्ध होने से छत्तीसगढ़ के जनमानस को जो भी जानकारी चाहिए वह अपनी भाषा और उपभाषा में उपलब्ध हो सकेगी। विभिन्न क्षेत्रों में क्षेत्रीय भेद के चलते एक ही भाषा को अलग-अलग प्रकार से बोली जाती है। छत्तीसगढ़ी को मैदानी क्षेत्रों में अलग तरीकों से बोला जाता है किंतु जैसे सरगुजा, बिलासपुर, रायगढ़, कवर्धा, आदि क्षेत्रों में जाते हैं तो वहां बोले जाने वाले छत्तीसगढ़ी के शब्दों एवं शैली में भिन्न्ता आ जाती है।
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस के इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. प्रशांत कुमार घोष के नेतृत्व में एक शोध-दल नौ भारतीय भाषाओं, जैसे – बंगाली, हिंदी, भोजपुरी, मगधी, छत्तीसगढ़ी, मैथिली, मराठी, तेलुगु और कन्नड़ में आवाज के माध्यम से सूचना तक पहुंचने की आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित तकनीक विकसित कर रहा है।
अपनी बोली में ही जानकारी उपलब्ध होने से दूर-दराज के गांव में रहने वाला कोई भी व्यक्ति स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों से लेकर पशुपालन, पशुओं का कृषकों के दैनिक जीवन में महत्व, पारंपरिक एवं आधुनिक खेती के तरीके, सर्वोत्तम उर्वरकों एवं कीटनाशकों का प्रयोग, वित्त, बैंकिंग, व्यवसाय, शासकीय योजनाएं, बच्चों के स्वास्थ्य एवं पोषण, आदि की विस्तृत जानकारी प्राप्त कर सकता है। यहां तक कि कम पढ़े-लिखे, गरीब व्यक्ति भी अपनी कमाई को सुरक्षित जगह में निवेश करने से लेकर अपने बच्चों के लिए सर्वोत्तम शिक्षा के अवसरों जैसे विभिन्न जानकारी ले सकता है।