January 29, 2025

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Chhattisgarh | पादरी के अंतिम संस्कार पर सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी, ईसाई कब्रिस्तान में दफनाने का आदेश

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Chhattisgarh | Supreme Court’s important comment on pastor’s funeral, order to bury him in Christian cemetery

नई दिल्ली/जगदलपुर। सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच ने छत्तीसगढ़ के एक ईसाई व्यक्ति की याचिका पर खंडित फैसला सुनाया। यह याचिका अपने पिता को या तो पैतृक गांव छिंदवाड़ा के कब्रिस्तान में या निजी कृषि भूमि पर दफनाने की मांग को लेकर दायर की गई थी।

खंडित फैसला, लेकिन समाधान स्पष्ट –

न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की बेंच ने अलग-अलग राय दी। न्यायमूर्ति नागरत्ना ने याचिकाकर्ता रमेश बघेल को अपने पिता को निजी भूमि पर दफनाने की अनुमति दी, जबकि न्यायमूर्ति शर्मा ने इस पर असहमति जताते हुए कहा कि दफनाने का अधिकार केवल ईसाई कब्रिस्तान में होना चाहिए।

मसीही कब्रिस्तान में होगा दफन –

पीठ ने मामले को तीसरे न्यायाधीश को नहीं भेजते हुए, राज्य सरकार और स्थानीय प्रशासन को निर्देश दिया कि रमेश बघेल के पिता का अंतिम संस्कार छिंदवाड़ा गांव से 20-25 किलोमीटर दूर स्थित ईसाई कब्रिस्तान में किया जाए।

न्यायमूर्ति नागरत्ना की सख्त टिप्पणी –

न्यायमूर्ति नागरत्ना ने स्थानीय अधिकारियों की आलोचना करते हुए कहा कि यह घटना धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक ताने-बाने के सिद्धांतों के खिलाफ है। उन्होंने जोर देकर कहा कि सभी धार्मिक आस्थाओं का सम्मान और सौहार्द भारत की गौरवशाली परंपराओं का प्रतीक है।

न्यायमूर्ति शर्मा का अलग दृष्टिकोण –

न्यायमूर्ति शर्मा ने कहा कि अनुच्छेद 21 और 25 के तहत अंतिम संस्कार का अधिकार तो है, लेकिन दफनाने की जगह चुनने की स्वतंत्रता संविधान की सीमाओं से बाहर है। उन्होंने सार्वजनिक व्यवस्था और सामाजिक शांति बनाए रखने पर जोर दिया।

क्या है विवाद? –

यह विवाद तब शुरू हुआ जब छिंदवाड़ा गांव के 65 वर्षीय पादरी सुभाष बघेल की 7 जनवरी को मौत हो गई। ग्रामीणों ने उनके शव को गांव के कब्रिस्तान में दफनाने का विरोध किया, जिससे मामला हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा।

सरकार को निर्देश –

सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि अंतिम संस्कार में सभी आवश्यक सहायता और पुलिस सुरक्षा प्रदान की जाए, ताकि यह प्रक्रिया शांति और सम्मान के साथ पूरी हो सके।

निष्कर्ष –

इस फैसले ने वर्षों पुरानी परंपराओं और सांप्रदायिक सौहार्द की आवश्यकता पर प्रकाश डाला है। अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि प्रशासन इस निर्देश को कैसे लागू करता है।

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