Chhattisgarh | नक्सल पीड़ितों और आत्मसमर्पित नक्सलियों को राहत, तीन हजार पक्के घर, तीन महीने में बने दो आशियाने

Chhattisgarh | Relief to Naxal victims and surrendered Naxalites, three thousand concrete houses, two houses built in three months
रायपुर, 7 अगस्त 2025. छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित वनांचलों में पुनर्वास और विश्वास की नई कहानी लिखी जा रही है। राज्य सरकार की पहल और केंद्र की विशेष परियोजना के अंतर्गत, तीन हजार प्रधानमंत्री आवास नक्सल हिंसा से पीड़ित और आत्मसमर्पित नक्सलियों के लिए स्वीकृत किए गए हैं। दुर्गम क्षेत्रों में रहते हुए भी सिर्फ तीन महीनों में दो परिवारों – सोडी हुंगी (सुकमा) और दशरी बाई (कांकेर) – ने अपने पक्के घरों का निर्माण पूरा कर लिया है।
तेज़ी से बदलती ज़िंदगी: नक्सल से नवजीवन की ओर
राज्य सरकार द्वारा किए गए विशेष अनुरोध पर केंद्र सरकार ने 15,000 आवासों की स्वीकृति दी है। इनमें से तीन हजार मकानों पर निर्माण कार्य प्रगति पर है, और 2111 परिवारों को पहली किस्त, जबकि 128 को दूसरी किस्त जारी की जा चुकी है।
तीन महीने में पूरा हुआ सपना – दशरी बाई और सोडी हुंगी की कहानी
दशरी बाई (कांकेर):
उनके पति की मौत नक्सली हमले में हुई थी। आवास स्वीकृति मार्च में मिली, मई में काम शुरू हुआ और जुलाई तक मकान बनकर तैयार हो गया। दूरस्थ क्षेत्र, खराब सड़कें और मानसून की चुनौती के बावजूद ग्राम पंचायत और जिला प्रशासन की मदद से यह संभव हुआ।
सोडी हुंगी (सुकमा):
नक्सलियों ने 2005 में पति की हत्या कर दी थी। बरसों तक टपकती छत के नीचे जीवन बिताया। विशेष परियोजना के तहत तीन किस्तों में ₹1.35 लाख की सहायता से जुलाई में पक्का घर पूरा हुआ।
जमीनी असर और आंकड़े
अब तक विशेष परियोजना में जिलेवार स्वीकृत परिवार:
सुकमा – 984
बीजापुर – 761
नारायणपुर – 376
दंतेवाड़ा – 251
बस्तर – 214
कोंडागांव – 166
कांकेर – 146
अन्य जिलों में कुल – 75+
सरकार की नीति : विश्वास, विकास और पुनर्वास
मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने कहा “यह केवल घर नहीं, बल्कि नए विश्वास और स्थायित्व की नींव है। सरकार का संकल्प है – हर पात्र परिवार को पक्का घर और सम्मानजनक जीवन मिले।”
गृह मंत्री विजय शर्मा ने कहा “यह परियोजना सामाजिक न्याय और मानवीय गरिमा की दिशा में ऐतिहासिक पहल है। सोडी हुंगी और दशरी बाई जैसे उदाहरण संवेदनशील शासन की मिसाल हैं।”
छत्तीसगढ़ सरकार का यह प्रयास सिर्फ ईंट और सीमेंट का निर्माण नहीं, बल्कि एक नए जीवन की शुरुआत है। जिन इलाकों में कभी नक्सली भय का साया था, वहां अब सपनों के घर बन रहे हैं। यह पुनर्वास योजना सामाजिक परिवर्तन का प्रतीक बन रही है।