Rahul Gandhi Vote Chori | From ‘vote theft’ to Sir, Rahul Gandhi made a new revelation…
नई दिल्ली। हरियाणा चुनावों में कथित ‘वोट चोरी’ और ‘चुनावी धांधली’ के आरोपों को राष्ट्रीय स्तर पर मुद्दा बनाकर कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने एक बड़ा और जोखिमभरा राजनीतिक दांव खेला है। बिहार चुनावों के मुहाने पर यह मुद्दा उठाना उनकी रणनीति का अहम हिस्सा है, जहां वे ‘लोकतंत्र खतरे में है’ और ‘संविधान बचाओ’ के नैरेटिव से विपक्ष को एकजुट करने की कोशिश कर रहे हैं।
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❓ Who is this lady?
❓ How old is she?
❓ Where is she from?She voted 22 times in Haryana, across 10 different booths in the state, using multiple names: Seema,… pic.twitter.com/3VHdBDLc14
— Congress (@INCIndia) November 5, 2025
हरियाणा से शुरू, बिहार तक पहुंची ‘वोट चोरी’ की लहर
राहुल गांधी ने हरियाणा के उचाना और कर्नाटक के महादेवपुरा जैसी सीटों का उदाहरण देते हुए मतदाता सूची में फर्जीवाड़े और हेरफेर के आरोप लगाए। कांग्रेस नेता का कहना है कि “कांग्रेस बीजेपी से नहीं, बल्कि वोट चोरी से हारती है।”
हरियाणा चुनाव के नतीजों के बाद राहुल गांधी ने इसे सामान्य हार नहीं, बल्कि ‘लोकतांत्रिक चोरी’ बताया और अब इसी मुद्दे को बिहार में उछाल दिया है।
‘हाइड्रोजन बम’ से विपक्ष को एकजुट करने की कोशिश
राहुल गांधी का दावा है कि ‘वोट चोरी’ का मुद्दा लोकतंत्र और अधिकारों से जुड़ा है। वे इसे “हाइड्रोजन बम” की तरह पेश कर विपक्षी गठबंधन INDIA के बिखरे धड़ों को एक मंच पर लाना चाहते हैं। उनका यह नैरेटिव पीएम मोदी के ‘घुसपैठिया’ कार्ड के सीधे मुकाबले में है एक तरफ ‘लोकतंत्र बचाओ’, दूसरी तरफ ‘राष्ट्र सुरक्षा’।
ममता बनर्जी से दूरी, मगर मुद्दा कॉमन
SIR (स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन) की प्रक्रिया पश्चिम बंगाल सहित कई राज्यों में शुरू हो चुकी है। ममता बनर्जी भी मतदाता सूची में छेड़छाड़ का आरोप लगा चुकी हैं, लेकिन राहुल गांधी की ‘वोट चोरी यात्रा’ से उन्होंने दूरी बनाए रखी है। दोनों नेताओं के बीच यह मुद्दा समान जरूर है, पर रणनीति अलग राहुल इसे राष्ट्रीय विमर्श बनाना चाहते हैं, जबकि ममता इसे राज्यीय स्तर पर सीमित रखना चाहती हैं।
जोखिम या फायदा?
बिहार चुनाव के बीच राहुल गांधी का यह दांव सहयोगी तेजस्वी यादव के लिए चुनौती भी बन सकता है। तेजस्वी जहां रोजगार और स्थानीय मुद्दों पर चुनाव लड़ रहे हैं, वहीं राहुल का ‘वोट चोरी’ नैरेटिव इन मुद्दों को ओवरशैडो कर सकता है।
हालांकि, राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि यह राहुल की इमेज पॉलिटिक्स का हिस्सा है – वे खुद को संविधान और संस्थाओं के रक्षक के रूप में स्थापित करने में लगे हैं।
