Bilaspur Train Accident | System slept, death ran on the tracks…
बिलासपुर। सोमवार दोपहर करीब दो बजे बिलासपुर स्टेशन के पास हुई मेमू लोकल और मालगाड़ी की भीषण टक्कर ने पूरे छत्तीसगढ़ को झकझोर दिया। हादसे में 11 यात्रियों की मौत और 20 से अधिक के घायल होने की आधिकारिक पुष्टि हुई है, जबकि राहत कार्य में शामिल सूत्रों का कहना है कि वास्तविक मृतकों की संख्या इससे कहीं अधिक हो सकती है।
इंजन चकनाचूर, ड्यूटी पर जान गंवाने वाला लोको पायलट
टक्कर इतनी भयंकर थी कि मेमू ट्रेन का इंजन पूरी तरह पिचक गया। लोको पायलट विद्यासागर की मौके पर ही मौत हो गई, जबकि उनकी सहयोगी महिला सह-पायलट रश्मि राज (34 वर्ष) गंभीर रूप से घायल हैं और अपोलो अस्पताल में वेंटिलेटर पर जिंदगी से जंग लड़ रही हैं।
राहत अभियान तेज, मलबे में फंसे शव
रेलवे और जिला प्रशासन ने संयुक्त रूप से राहत कार्य शुरू किया। बचावकर्मी घंटों तक मलबा हटाते रहे, जहां से कई शव देर रात तक निकाले गए। सभी घायलों को अपोलो और अन्य नज़दीकी अस्पतालों में भर्ती कराया गया है। रेलवे ने प्रत्येक घायल को ₹50,000 की अनुग्रह राशि दी है।
क्या आंकड़ों से सच्चाई छिपा रहा प्रशासन?
जहाँ रेलवे प्रशासन 11 मौतें और 20 घायलों की बात कह रहा है, वहीं मौके पर मौजूद रेस्क्यू टीम का दावा है कि कई शव इंजन और पहले दो डिब्बों में फंसे रहे। कई यात्रियों की अब तक पहचान नहीं हो सकी है।
मानव त्रुटि या सिग्नल फेल – जांच में उलझे सवाल
सबसे बड़ा सवाल यही है कि मेमू ट्रेन ने खड़ी मालगाड़ी को कैसे नहीं देखा? क्या सिग्नल फेल हुआ, या पायलट को गलत क्लियरेंस दी गई? क्या ट्रैक मॉनिटरिंग सिस्टम फेल हुआ? जांच समिति गठित की गई है, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि “हर बार की तरह सच्चाई इस बार भी सिस्टम की दीवारों में फंसी रह जाएगी।”
कवच प्रणाली फिर फेल – सुरक्षा सिस्टम बना मज़ाक
रेल मंत्री ने पांच साल पहले दावा किया था कि हर इंजन में कवच जैसी सुरक्षा प्रणाली लगाई जाएगी, जो 4 किलोमीटर पहले खतरे का संकेत दे देगी। लेकिन दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे में यह सिस्टम नदारद मिला। सूत्रों का कहना है कि सुरक्षा बजट को फर्नीचर और विलासिता पर खर्च कर दिया गया, जिससे हादसों को रोकने वाला कवच सिस्टम अधूरा रह गया।
बिलासपुर में पसरा शोक, कार्यक्रम रद्द
राज्योत्सव के समापन कार्यक्रमों को हादसे के चलते रद्द कर दिया गया। शहर में शोक का माहौल है। रेलवे कॉलोनियों में ग़म और गुस्सा दोनों है, कर्मचारियों की आंखों में विद्यासागर और रश्मि राज की यादें नम हैं।
अब ये सवाल जवाब मांगते हैं
क्या रेल सुरक्षा सिर्फ कागजों तक सीमित है?
कवच प्रणाली आखिर कहां गायब है?
क्या हर हादसे के बाद ही सिस्टम को जागना पड़ेगा?
यह हादसा केवल एक तकनीकी गलती नहीं, बल्कि सुरक्षा तंत्र की लापरवाही और सिस्टम की थकान का प्रतीक बन गया है।
