Chhattisgarh | छत्तीसगढ़ का खनिज मॉडल, हरित विकास और आर्थिक समृद्धि का सफल संतुलन

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Chhattisgarh’s mineral model, a successful balance of green development and economic prosperity

रायपुर, 25 अक्टूबर 2025। छत्तीसगढ़ ने न केवल हरियाली और संस्कृति के लिए बल्कि खनिज संसाधनों के विवेकपूर्ण दोहन के लिए भी देश में अपनी पहचान बनाई है। राज्य की धरती में देश के कुल खनिज भंडार का बड़ा हिस्सा मौजूद है, जिससे प्रदेश की अर्थव्यवस्था में खनिज क्षेत्र का योगदान लगातार बढ़ रहा है। वर्तमान में खनिज क्षेत्र की हिस्सेदारी राज्य की जीएसडीपी का लगभग 10 प्रतिशत है।

राज्य गठन के समय खनिज राजस्व केवल 429 करोड़ रुपये था, जो अब बढ़कर 14,592 करोड़ रुपये हो गया है, यानी पिछले 25 वर्षों में 34 गुना वृद्धि दर्ज की गई है। वन और पर्यावरण संतुलन बनाए रखते हुए यह उपलब्धि विशेष रूप से उल्लेखनीय है। वनसंरक्षण अधिनियम के तहत राज्य के कुल वन क्षेत्र का मात्र 0.47 प्रतिशत भूमि खनन के लिए दी गई, और इसके मुकाबले 5 से 10 गुना वृक्षारोपण अनिवार्य करने से प्रदेश के वन क्षेत्र में 68,362 हेक्टेयर की वृद्धि हुई है।

खनिजों से प्रदेश को न केवल आर्थिक संबल मिलता है, बल्कि हजारों युवाओं के लिए रोजगार के अवसर भी खुल रहे हैं। मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय के नेतृत्व में राज्य सरकार ने खनिज संपदा के दोहन को पर्यावरणीय संतुलन और जनहित के साथ जोड़कर “खनिज से विकास” की नई परिभाषा गढ़ी है।

प्रमुख खनिज और उनका महत्व

कोयला: छत्तीसगढ़ देश का दूसरा सबसे बड़ा कोयला उत्पादक राज्य है। राज्य में 74,192 मिलियन टन भंडार, देश के कुल कोयला भंडार का 20.53 प्रतिशत। कोयला उत्पादन में राज्य का योगदान 20.73 प्रतिशत है।

लौह अयस्क: 4,592 मिलियन टन भंडार, राष्ट्रीय उत्पादन में 16.64 प्रतिशत। NMDC की बैलाडीला और दल्लीराजहरा खदानें देश के इस्पात उद्योग की रीढ़ हैं।

बॉक्साइट: 992 मिलियन टन भंडार, राष्ट्रीय उत्पादन में 4.3 प्रतिशत।

चूना पत्थर: 13,211 मिलियन टन भंडार, राष्ट्रीय उत्पादन में 11 प्रतिशत। बलौदाबाजार को अब ‘सीमेंट हब’ कहा जाता है।

टिन: देश का 100 प्रतिशत उत्पादन छत्तीसगढ़ में।

डोलोमाइट और हीरा-स्वर्ण: डोलोमाइट भंडार 992 मिलियन टन, और हीरा व स्वर्ण खनिज की प्रमाणित भंडार क्षमता विभिन्न जिलों में मौजूद।

इसके अलावा राज्य के गौण खनिज जैसे रेत, मुरम, ईमारती पत्थर, साधारण मिट्टी आदि से स्थानीय राजस्व और रोजगार के अवसर बढ़ रहे हैं। खनन प्रभावित इलाकों में पुनर्वास और विकास के लिए DMF योजनाएं संचालित की जा रही हैं, जिनमें शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल और सड़क निर्माण शामिल हैं।

छत्तीसगढ़ ने यह साबित कर दिया है कि खनिज विकास और पर्यावरण संरक्षण एक-दूसरे के पूरक हो सकते हैं, और नीति में दूरदृष्टि एवं संवेदनशील क्रियान्वयन के माध्यम से खनिज संपदा केवल आर्थिक लाभ ही नहीं, बल्कि जनजीवन की समृद्धि में भी बदल सकती है।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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