क्या है मैकमोहन लाइन? 1914 में तय हुई थी चीन और भारत की सीमा, क्यों नहीं मानता चीन?
1 min readक्या है मैकमोहन लाइन? 1914 में तय हुई थी चीन और भारत की सीमा, क्यों नहीं मानता चीन?
सीमा को लेकर 1914 में हो गया था फैसला
फिर चीन क्यों नहीं मानता मैकमोहन रेखा
पिछले कुछ दिनों से लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) यानी कि वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास भारत और चीन के सैनिकों के बीच सीमा विवाद को लेकर तनातनी देखने को मिल रही है. करीब 20 दिन पहले चीनी हेलिकॉप्टर्स, भारतीय वायु सीमा के करीब आ गए थे, लेकिन भारत के फाइटर्स विमानों ने लेह एयर बेस से उड़ान भरकर उन्हें खदेड़ दिया था.
वहीं ताजा सैटेलाइट तस्वीरों में अक्साई चीन क्षेत्र में सड़क के किनारे चीनी सेना के बड़े मूवमेंट के संकेत मिलते हैं. अक्साई चिन लद्दाख का वही हिस्सा है जिस पर चीन ने 1962 युद्ध के बाद से कब्जा कर रखा है. जबकि भारत पश्चिमी सेक्टर में अक्साई चीन पर अपना दावा करता है.
यूरोपियन स्पेस एजेंसी की ताजा तस्वीरों से इस महीने के तीसरे हफ्ते में अक्साई चिन क्षेत्र में मूवमेंट के संकेत मिलते हैं. इन तस्वीरों के विश्लेषण से पता चलता है कि मूव करते ढांचे 30-50 मीटर ऊंचे हो सकते हैं. तस्वीरें जमीन पर हुए और देखे जा सकने वाले बदलावों को दर्शाती हैं जो कि संभवत: बड़े पैमाने पर मूवमेंट की वजह से हुए.
क्या है सीमा विवाद?
भारत और चीन, 3,488 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करता है. ये सीमा जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश से होकर गुजरती है. ये तीन सेक्टरों में बंटी हुई है – पश्चिमी सेक्टर यानी जम्मू-कश्मीर, मिडिल सेक्टर यानी हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड और पूर्वी सेक्टर यानी सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश.
चीन पूर्वी सेक्टर में अरुणाचल प्रदेश को दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा बताते हुए अपना दावा करता है. चीन, तिब्बत और अरुणाचल प्रदेश के बीच की मैकमोहन रेखा को ये कहते हुए मानने से इनकार करता है कि 1914 में जब ब्रिटिश भारत और तिब्बत के प्रतिनिधियों ने समझौता किया था, तब वो वहां मौजूद नहीं था. जबकि गुलाम भारत के ब्रिटिश शासकों ने तवांग और दक्षिणी हिस्से को भारत का हिस्सा माना और जिसे तिब्बतियों ने भी सहमति दी. चीनी प्रतिनिधियों ने इसे मानने से इनकार कर दिया.
चीन के मुताबिक तिब्बत पर उनका हिस्सा है इसलिए वो बिना उनकी सहमति के कोई फैसला नहीं ले सकते.
दरअसल 1914 में जब मैकमोहन रेखा तय हुई थी तो तिब्बत कमजोर था, हालांकि वो स्वतंत्र भी था. लेकिन चीन ने तिब्बत को कभी स्वतंत्र मुल्क माना ही नहीं, इसलिए इस फैसले को भी नहीं मानता. चीन ने 1950 में तिब्बत पर पूरी तरह से अपने कब्जा जमा लिया.
मैकमोहन नाम क्यों पड़ा?
साल 1913-1914 में जब ब्रिटेन और तिब्बत के बीच सीमा निर्धारण के लिए ‘शिमला सम्मेलन’ हुआ तो इस बातचीत के मुख्य वार्ताकार थे सर हेनरी मैकमोहन. इसी वजह से इस रेखा को मैकमोहन रेखा के नाम से जाना जाता है. शिमला समझौते के दौरान ब्रिटेन, चीन और तिब्बत, अलग-अलग पार्टी के तौर पर शामिल हुए थे.
भारतीय साम्राज्य में तत्कालीन विदेश सचिव सर हेनरी मैकमहोन ने ब्रिटिश इंडिया और तिब्बत के बीच 890 किलोमीटर लंबी सीमा खींची. इसमें तवांग (अरुणाचल प्रदेश) को ब्रिटिश भारत का हिस्सा माना गया.
मैकमहोन लाइन के पश्चिम में भूटान और पूरब में ब्रह्मपुत्र नदी का ‘ग्रेट बेंड’ है. यारलुंग जांगबो के चीन से बहकर अरुणाचल में घुसने और ब्रह्मपुत्र बनने से पहले नदी दक्षिण की तरफ बहुत घुमावदार तरीके से बेंड होती है. इसी को ग्रेट बेंड कहते हैं.
1937 में मिली थी अंतरराष्ट्रीय मान्यता
शिमला समझौता प्रथम विश्व युद्ध से पहले हुआ था. लेकिन वर्ल्ड वॉर के दौरान स्थितियां बदल गईं. काफी समय बाद 1937 में अंग्रेज़ों की- अ कलेक्शन ऑफ ट्रीटीज़, ऐंगेज़मेंट्स ऐंड सनद्स रिलेटिंग टू इंडिया ऐंड नेबरिंग कंट्रीज़ नाम से एक किताब आई. विदेश विभाग में भारत सरकार (ब्रिटिश) के अंडर सेक्रटरी सी यू एचिसन ने इसे तैयार किया था. ये भारत और उसके पड़ोसी देशों के बीच हुई संधियां और समझौते का आधिकारिक संग्रह था. इसमें नई जानकारियां भी अपडेट हुई और मैकमोहन रेखा को अंतरराष्ट्रीय मान्यता मिली.
तो इसलिए चीन करता है इनकार
वहीं चीन इसे मानने से ये कहते हुए इनकार करता है कि मैकमहोन लाइन के बारे में उसको बताया ही नहीं गया था. उससे बस इनर और आउटर तिब्बत बनाने के प्रस्ताव पर बात की गई थी. उसे अंधेरे में रखकर तिब्बत के प्रतिनिधि लोनचेन शातरा और हेनरी मैकमहोन के बीच हुई गुप्त बातचीत की अंडरस्टैंडिंग पर मैकमहोन रेखा खींच दी गई.