Pola Amavasya 2022 | 27 अगस्त को पोला आमवस्या, सज गया बाजार, जानिए इसका महत्व
1 min readPola Amavasya, decorated market on 27th August, know its importance
रायपुर। पोला का पर्व 27 अगस्त को मनाया जाएगा, जिसके लिए बाजार भी पूरी तरह से सज गया है, लेकिन इस बाजार से रौनक गायब है। बीते 2 सालों तक कोरोना की वजह से सभी तरह के पर्व और त्योहार प्रभावित हुए थे लेकिन इस बार मिट्टी और लकड़ी के खिलौने बेचने वाले दुकानदारों को अच्छी ग्राहकी की उम्मीद है। अभी तक इन दुकानों में गिने चुने ग्राहक पोला पर्व के लिए खिलौने खरीद रहे हैं, हालांकि दुकानदारों को उम्मीद है कि अच्छी ग्राहकी होगी। बात अगर महंगाई की करें तो लकड़ी के बने बैल की कीमत में थोड़ी सी बढ़ोतरी हुई है लेकिन मिट्टी के खिलौने में किसी तरह का महंगाई का असर देखने को नहीं मिला है।
मिट्टी से बनाए गए खिलौनों का मेहनत के हिसाब से नहीं मिलती मजदूरी –
पोला पर्व को लेकर कुम्हार परिवारों ने इस बार मिट्टी के खिलौने और मिट्टी के बने रंग-बिरंगे बैल बाजार में लेकर आए हैं। राजधानी में सजे इस बाजार में एक जोड़ी मिट्टी का बैल 60 रुपये से लेकर 100 रुपये जोड़ी तक बिक रहा है। मिट्टी के खिलौने बनाने वाले कुम्हारों ने बताया “मिट्टी के खिलौने बनाने में काफी मेहनत लगता है। मिट्टी खरीदनी पड़ती है। रंग खरीदना पड़ता है। कई कच्ची सामग्री खरीदनी होती है, जिसके दाम भी पहले की तुलना में काफी बढ़ गए हैं, लेकिन मिट्टी के बने बैल और खिलौनों के दाम में किसी तरह की कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है, जिसको लेकर थोड़ी मायूसी है। ”
लकड़ी से बने बैल के दाम में दिखा महंगाई का असर –
लकड़ी के बैल बेचने वाले अमन वासुदेव बताते हैं ” पिछले साल की तुलना में इस बार 1 जोड़ी बैल की कीमत में लगभग 20 रुपये का इजाफा हुआ है, लेकिन ग्राहकी अभी नहीं के बराबर है. उम्मीद की जा रही है कि ग्राहकी बढ़ेगी।”
पोला पर्व क्यों मनाया जाता है –
पोला पर्व मनाने के पीछे यह मान्यता है कि भारत देश कृषि प्रधान देश है यहां कृषि को अच्छा बनाने में मवेशियों का विशेष योगदान होता है। भारत देश में इन मवेशियों की पूजा की जाती है। पोला का त्यौहार उन्हीं में से एक है। पोला पर्व के दिन कृषक गाय बैलों की पूजा करते हैं। पोला पर्व खासतौर पर छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। पोला पर्व के दिन बच्चे मिट्टी और लकड़ी के बने खिलौनों की पूजा पाठ होने के बाद इन खिलौनों से खेलते हैं। मिट्टी और लकड़ी के बने बैल को बच्चे रस्सी से बांधकर खींचकर चलाते हैं।