November 25, 2024

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Chhattisgarh | छत्तीसगढ़ के 9 जाबांजो ने किया कमाल, टोली के 4 दिव्यांग, पूरी की एवरेस्ट के बेस कैंप की चढ़ाई

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9 Jabanjo of Chhattisgarh did wonders, 4 Divyang of the team, climbed the base camp of Everest

रायपुर। एवरेस्ट के बेस कैंप की चढ़ाई करने में छत्तीसगढ़ के 9 जांबाजों ने कमाल कर दिखाया। इस टोली में 4 ऐसे हैं, जो दिव्यांग हैं। किसी के पैर नहीं तो किसी को देखने में समस्या आती है। मगर इसके बाद भी उन्होंने मुश्किलों के पहाड़ को हौसले की कुल्हाड़ी के सहारे पार किया।

प्रदेश के इन 9 युवाओं ने 10 दिनों में एवरेस्ट बेस कैंप की 5364 मीटर की चढ़ाई पूरी की। इनमें प्रदेश की पहली ट्रांसवुमन भी शामिल है। इन सभी ने प्रदेश के माउंटेनियर चित्रसेन साहू से इंस्पायर होकर इस मिशन को पूरा किया। चित्रसेन खुद एक ट्रेन हादसे में अपने दोनों पैर गंवा चुके हैं, कृत्रिम पैरों की मदद से पहाड़ों की चढ़ाई करते हैं।

14 साल की चंचल का जन्म से नहीं है एक पैर –

14 साल की चंचल सोनी धमतरी की रहने वाली हैं। इन्होंने एक पैर और बैसाखी के सहारे एवरेस्ट के बेस कैंप की चढ़ाई की है। चंचल 12 साल की उम्र से व्हील चेयर बास्केट बॉल प्रतियोगिता में हिस्सा ले रही हैं। उन्होंने बताया कि ट्रैकिंग के लिए एक साल से पैदल चलने की प्रैक्टिस कर रही हूं। रोज रूद्री से गंगरेल डैम तक यानी लगभग 12 किलोमीटर पैदल चलती थी। कई बार आसपास के जंगल और पहाड़ों पर भी गई। चंचल एक पैर से डांस भी करती हैं।

चंचल ने राजिम कुंभ मेला में 3 साल पहले भाग लिया था। पर्वतारोही और इस टीम के लीडर चित्रसेन को पता चला कि चंचल की रुचि ट्रैकिंग में है। उन्होंने कुछ सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए चंचल के परिजनों के बारे में जानकारी लेकर संपर्क किया। इसके बाद चंचल इस एवरेस्ट बेस कैंप मिशन का हिस्सा बनी और कामयाबी भी हासिल की।

21 साल की पैरा जूडो खिलाड़ी रजनी जोशी लो विजन से जूझ रही हैं। उन्होंने बताया- चढ़ाई के दौरान स्नो फॉल हुआ। बर्फीली पहाड़ियों पर चढ़ते वक्त कई बार स्टिक फिसल जाती थी। गिरने का डर बना रहता था। कई बार लड़खड़ाई भी, जैसे-जैसे ऊपर पहुंचते गए ऑक्सीजन कम होती गई, जिसके कारण सांस लेने में दिक्कत हुई। बर्फबारी के कारण ठंड बहुत लग रही थी। ट्रैकिंग से पहले प्रैक्टिस के मकसद से रोज अपनी साथी चंचल के साथ लगभग 12 किलोमीटर चलती थी। चंचल के साथ रजनी को भी पहाड़ों पर चढ़ना अच्छा लगता था, इसी की वजह से एवरेस्ट बेस कैंप पहुंचीं।

5364 की ऊंचाई पर ईद की खुशी –

36 साल के अनवर अली ने एक कृत्रिम पैर की मदद से चढ़ाई की। उन्होंने बताया कि जीवन में पहली बार ईद घर के बाहर मनाई। खास उपलब्धि बेहद खास दिन मिली। 5364 मीटर की ऊंचाई पर पहुंचने के बाद वहां नमाज अदा की। ऊबड़-खाबड़ रास्ते होने के कारण कृत्रिम पैरों में बैलेंस बनाने में बहुत परेशानी हुई। बर्फ में चलने में बहुत दिक्कत हुई। इससे पहले सउदी अरब में मक्का की सबसे ऊंची चोटी पर जा चुका हूं। अनवर अली अब तक 60 से अधिक बार ब्लड डोनेट कर चुके हैं। एक एक्सीडेंट में अनवर का एक पैर कट गया था।

पहली ट्रांसवुमन शिखर पर –

रायपुर की रहने वाली निक्की बजाज ट्रांसवुमन हैं। वो अपनी कम्युनिटी से प्रदेश की पहली ऐसी हस्ती हैं, जिन्होंने एवरेस्ट बेस कैंप पर चढ़ाई की। 31 साल की निक्की रायपुर और मुंबई में मेकअप और हेयर स्टाइलिस्ट का काम करती हैं। एक वक्त ऐसा भी था जब समाज के लोगों ने इनकी पहचान की वजह से इन्हें मुख्य धारा में जोड़ना नहीं चाहा। मगर अपनी पहचान बनाने के मकसद ने निक्की ने इस मिशन को पूरा किया।

एवरेस्ट बेस कैंप चढ़ने वालों में इनके अलावा गुंजन सिन्हा (25) जो डिजिटल मार्केटर/फिल्म मेकर हैं, पेमेंन्द्र चंद्राकर (38) ट्रेकर/माउंटेन फोटोग्राफर, राघवेंद्र चंद्राकर (47),आशुतोष पांडेय ( 39) शामिल हैं।

टीम को लीड किया चित्रसेन ने –

इस मिशन को माउंटेनियर चित्रसेन ने लीड किया। उन्होंने बताया कि यूथ में एडवेंचस स्पोर्ट्स के प्रति लगाव पैदा करने के लिए छत्तीसगढ़ शासन के समाज कल्याण विभाग, मंत्री अनिला भेंडिया ,कलेक्टर बालोद जनमेजय महोबे ने सपोर्ट किया। चित्रसेन ने बताया कि हमारे इस मिशन का नाम था “अपने पैरों पर खड़े हैं” मिशन इंक्लूजन।

इसके पीछे हमारा एक मात्र उद्देश्य है सशक्तिकरण और जागरूकता, जो लोग जन्म से या किसी दुर्घटना के बाद अपने किसी शरीर के हिस्से को गवां बैठते हैं, उन्हें सामाजिक स्वीकृति दिलाना, ताकि उन्हें समानता प्राप्त हो ना किसी असमानता के शिकार हो तथा बाधा रहित वातावरण निर्मित करना और चलन शक्ति को बढ़ाना। इस मिशन में अलग अलग प्रकार के विकलांगता, जेंडर, उम्र और कम्युनिटी के लोग साथ में ट्रैकिंग की।

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