Diwali 2020 | दिवाली पर 17 साल बाद ऐसा संयोग, जानें शुभ मुहूर्त और पूजन विधि
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दीपावली का त्योहार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को मनाया जाता है. ग्रहों के विशेष संयोग से इस बार दिवाली बेहद खास रहने वाली है. दिवाली पर शनि स्वाति योग से सर्वार्थ सिद्धि योग (sarvartha siddhi yog) बन रहा है. ज्योतिषाचार्य विशाल अरोड़ा के मुताबिक, दिवाली पर 17 साल बाद आया सर्वार्थ सिद्धि योग बेहद लाभकारी सिद्ध होगा.
ग्रहों का योग: दिवाली पर धन और ज्ञान का कारक बृहस्पति ग्रह अपनी स्वराशि धनु और शनि (Shani) अपनी स्वराशि मकर में रहेगा. जबकि शुक्र ग्रह कन्या राशि में रहेगा. ज्योतिषविदों का कहना है कि दिवाली पर ऐसा संयोग 499 साल बाद बन रहा है. इससे पहले ग्रहों की ऐसी स्थिति 1521 में देखी गई थी.
शुभ मुहूर्त: दिवाली पर शाम को 5 बजकर 30 मिनट से शाम के 7 बजकर 07 मिनट तक प्रदोष काल रहेगा. इस काल में पूजा करना बेहद शुभ माना गया है. इसके बाद निशीथ काल पूजा मुहूर्त रात्रि 08 बजे से रात 10.50 बजे तक रहेगा. 10 बजकर 33 मिनट से रात 12 बजकर 11 मिनट तक अमृत मुहूर्त रहेगा, जिसमें आप कनक धारा स्तोत्र का पाठ, श्री सूक्त का पाठ कर सकते हैं.
लाभ मुहूर्त: दिवाली पर शाम 05 बजकर 38 से 07 बजकर 16 तक लाभ मुहूर्त लगेगा. इस दौरान दान, धर्म आदि के काम बेहद शुभ माने जाते हैं. इस दौरान किए गए कुशल कार्यों का लाभ व्यक्ति को लंब समय तक मिलता है. इससे पहले सुबह 11 बजकर 44 मिनट से दोपहर 12 बजकर 27 मिनट तक अभिजीत मुहूर्त रहने वाला है.
पूजन सामग्री: कमल पर बैठी मां लक्ष्मी, भगवान गणेश की मूर्ति, कमल और गुलाब की पत्तियां, साबुत पान के पत्ते, रोली, सिंदूर और केसर, साबुत चावल, सुपारी, फल, मिठाई, दूध, दही, शहद, इत्र और गंगाजल, कलावा, खील-बताशे, पीतल का दीपक और मिट्टी की दिए, तेल, घी और रूई की बाती, कलश, एक नारियल, चांदी का सिक्का, लाल या पीले रंग का आसन और चौकी
कैसे करें पूजा: स्कंद पुराण के अनुसार कार्तिक अमावस्या के दिन सुबह स्नान आदि से निवृत्त होकर सभी देवी देवताओं की पूजा करनी चाहिए. शाम के समय पूजा घर में मां लक्ष्मी और भगवान गणेश की नई मूर्तियों को एक चौकी पर स्वस्तिक बनाकर स्थापित करना चाहिए. पूजा के स्थान पर रुपया, सोना या चांदी का सिक्का जरूर रखें.
मूर्तियों के सामने एक जल से भरा हुआ कलश रखना चाहिए. इसके बाद मूर्तियों के सामने बैठकर हाथ में जल लेकर शुद्धि मंत्र का उच्चारण करते हुए उसे मूर्ति, परिवार के सदस्यों और घर में छिड़कना चाहिए. अब फल, फूल, मिठाई, दूर्वा, चंदन, घी, मेवे, खील, बताशे, चौकी, कलश, फूलों की माला आदि सामग्रियों का प्रयोग करते हुए पूरे विधि-विधान से लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा करनी चाहिए.
इनके साथ-साथ देवी सरस्वती, भगवान विष्णु, मां काली और कुबेर की भी विधिपूर्वक पूजा करनी चाहिए. पूजा करते समय 11 छोटे दीप और एक बड़ा दीप जलाना चाहिए. पूजा के बाद दीपक घर के बाहर आंगन में लगा दें. ध्यान रखें कि इस दिन घर के किसी भी कोने में अंधकार न रहे.